महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया ( Maharana Pratap life introduction )
ज्येष्ठ शुक्ला तृतीय 9 मई 1540 को हुआ । महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित कुंभलगढ़ दुर्ग के बादल महल में हुआ।
महाराणा प्रताप सैनिक भग्नावशेष कहे जाने वाले राणा सांगा के पोत्र तथा उदयपुर के संस्थापक मेवाड़ महाराणा उदय सिंह जी तथा अखेराज सोनगरा की पुत्री जयवंता बाई के पुत्र थे।
अन्य कुछ इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म स्थल प्रताप के ननिहाल पाली के राज महल में माना जाता है।
Maharana Pratap height
Maharana Pratap height 7 feet 5 inches / 2.26 m Maharana Pratap of Mewar is considered to be the most heroic king. Their height was 7 feet 5 inches. The biggest thing is that he used to carry a weight of 360 kg. They have two swords of 80 kg. The javelin of 70 kg was always there.
Rana Pratap had 11 marriages in his life
विवाह
महाराणा प्रताप सिंह का 17 वर्ष की आयु में विवाह हुआ।
प्रथम विवाह अजब्दे पवार के साथ हुआ।
कई इतिहासकारों का मत है कि महाराणा प्रताप सिंह जी ने अपने जीवन में कुल 11 विवाह किए।
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गुण
एकलिंग नाथ दीवान महाराणा प्रताप गुणों के धनी थे वह न केवल दृढ़ संकल्प योद्धा थे बल्कि उनमें स्वाभिमान की भावना भी बहुत अधिक थी।
उनकी दृढ़ता तथा देश भक्ति की प्रशंसा स्वयं विपक्षी भी करते थे।
महाराणा प्रताप चाहते हैं तो अन्य राजाओं की तरह अकबर की अधीनता स्वीकार करके राजा रजवाड़ों की तरह अपना जीवन बिता सकते थे परंतु किसी के सामने घुटने नहीं टेकने के गुण के कारण उन्होंने राजपाट के सभी सुख भी त्याग दिए थे।
विवाह
महाराणा प्रताप सिंह का 17 वर्ष की आयु में विवाह हुआ।
प्रथम विवाह अजब्दे पवार के साथ हुआ।
कई इतिहासकारों का मत है कि महाराणा प्रताप सिंह जी ने अपने जीवन में कुल 11 विवाह किए।
राज्याभिषेक
महाराणा प्रताप सिंह जी का राज्य अभिषेक 28 फरवरी 1572 में गोगुंदा में महादेव पहाड़ियों पर 32 वर्ष की आयु में हुआ। महाराणा प्रताप सिंह राजा के रूप में अपने कार्यकाल को 25 वर्षों तक सुशोभित किया।
मेवाड़ महाराणा प्रताप के समकालीन दिल्ली में मुगल बादशाह अकबर
अकबर की साम्राज्यवादी नीति के अनुसार अकबर द्वारा कई राजा से अधीनता स्वीकार कराई गई इसी मकसद के साथ उसने महाराणा प्रताप को भी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया परंतु महाराणा प्रताप ने अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया तब अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए कुछ शिष्टमंडल भेजें जिनमें जलाल का मान सिंह भगवंत दास तथा टोडरमल सम्मिलित है |
अकबर तथा महाराणा प्रताप के बीच इस द्वंद की सबसे बड़ी रोचक बात यह थी कि अकबर महाराणा प्रताप को बिना युद्ध के अधीनता स्वीकार कर आना चाहता था यही कारण था कि उसने पहले शिष्टमंडल भेजें परंतु जब महाराणा प्रताप नहीं झुके तो उसने युद्ध नीति को अपनाया।
महाराणा प्रताप की जीवन काल के युद्ध
हल्दीघाटी युद्ध
- 18 जून 1576 को खमनोर या गोगुंदा की पहाड़ी में लड़ा जाने वाला यह युद्ध ना केवल महाराणा प्रताप के जीवन काल का बल्कि संपूर्ण भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण युद्धों में से एक था।
- हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व मानसिंह ने संभाला वही महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व झाला मान तथा हकीम खां सूरी के हाथों में था महाराणा प्रताप सिंह जी की सेना में न केवल उच्च वर्ग के या राजपूत सैनिक ही नहीं थे बल्कि उनकी सेना में प्रत्येक वर्ग के सैनिक शामिल थे जिनमें से एक पूंजा भील उनके विश्वासपात्र थे।
- महाराणा प्रताप की सेना में एकमात्र मुस्लिम सरदार हकीम खां सूरी थे।
- इसे युद्ध में महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक शत्रुओं से वीरता से लड़ता हुआ देवलोक गमन हो गया।
- इस युद्ध का आंखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनी ने किया।
- इस युद्ध के संबंध में कई इतिहासकारों का मानना है कि हल्दीघाटी का युद्ध अकबर तथा महाराणा प्रताप के बीच एक और निर्णायक युद्ध साबित हुआ।
- इसी युद्ध के लिए कर्नल जेम्स टॉड ने कहा कि यह “मेवाड़ की थर्मोपोली” है।
दिवेर का युद्ध
1582 में हुए दिवेर का युद्ध राजस्थान इतिहास के महत्वपूर्ण युद्ध में से एक है क्योंकि इसी युद्ध में महाराणा प्रताप को अपने खोए हुए कुछ साम्राज्य को दोबारा प्राप्त करने का अवसर मिला।
इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व उनके जेष्ठ पुत्र अमर सिंह ले लिया वही अकबर की सेना का नेतृत्व सूरेमान सुल्तान खा ने किया।
इस युद्ध में अमर सिंह ने सुलेमान सुल्तान पर एक ही बार में भाले से ऐसा घातक प्रहार किया कि दिवेर युद्ध में विजय महाराणा प्रताप सिंह जी की हुई।
राजधानी
महाराणा प्रताप सिंह जी ने अपने जीवन काल में कभी भी चित्तौड़गढ़ पर अधिकार नहीं किया इसलिए चित्तौड़गढ़ कभी भी महाराणा प्रताप की राजधानी नहीं बन पाई परंतु महाराणा प्रताप ने अपनी संकटकालीन राजधानी कुंभलगढ़ को बनाया हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप ने अपनी अस्थाई राजधानी आवरण को बनाया। तथा अपनी आपातकालीन राजधानी चावंड को बनाया।
अन्य घटनाएं
हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप ने गोरिला पद्धति अपनाई। तथा कुंभलगढ़ की पहाड़ियों पर अपना लंबा समय व्यतीत किया महाराणा प्रताप को अधीनता स्वीकार कराने के लिए अकबर ने भी हार नहीं मान रखी थी उसने महाराणा प्रताप को अधीनता स्वीकार करवाने के लिए कुंभलगढ़ पर 3 बार आक्रमण किया परंतु फिर भी महाराणा प्रताप नहीं झुके।
1580 में जब महाराणा प्रताप सिंह जी की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई तो महाराणा प्रताप सिंह जी की सहायता के लिए मेवाड़ के उद्धारक नाम से जाने जाने वाले भामाशाह ने 20000 स्वर्ण मुद्राएं देकर महाराणा प्रताप सिंह जी की सेना को पुनः आर्थिक रूप से मजबूत किया उस काल के अनुसार यह राशि बहुत बड़ी थी जिससे 25000 सैनिकों का 12 वर्ष तक निर्वहन किया जा सकता था।
इसी के परिणाम स्वरूप महाराणा प्रताप सिंह जी ने चावंड के लूणा चावंडिया पर आक्रमण किया और चावंड पर अपना आधिपत्य स्थापित किया चामुंडा माता का मंदिर बनवाया।
उपाधि
हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप को मेवाड़ केसरी के नाम से जाना जाता है।
मृत्यु
महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी 1597 को चावंड में धनुष की प्रत्यंचा से हुई।
कहा जाता है कि महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार पाकर स्वयं अकबर की आंखों में भी आंसू आ गए थे। इस घटना का वर्णन अकबर के दरबार में उपस्थित दुरासा आढ़ ने अपने छंद में किया जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अकबर महाराणा प्रताप का भले ही शत्रु था परंतु मन से वह महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक भी था।
हल्दीघाटी दर्रा
हल्दीघाटी दर्रा अरावली पर्वत श्रंखला के मध्य खमनोर पहाड़ियों में स्थित है | यह दर्रा भौगोलिक रूप से मारवाड़ के पाली तथा मेवाड़ के राजसमंद को जोड़ता है ऐतिहासिक रूप से इस दर्रे में विश्व प्रसिद्ध युद्ध हल्दीघाटी का महाराणा प्रताप तथा मुगल बादशाह अकबर के बीच हुआ था।
यह दर्रा राजस्थान में एकलिंग नाथ जी मंदिर कैलाशपुरी से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इस दर्रे को हल्दीघाटी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां की मिट्टी का रंग पीला है।
प्रताप गौरव केंद्र
प्रताप गौरव केंद्र राजस्थान के उदयपुर जिले में नव विकसित पर्यटन स्थल है। इसकी शुरुआत वीर शिरोमणि प्रताप समिति द्वारा की गई जिसका उद्देश्य लोगों को महाराणा प्रताप तथा मेवाड़ के इतिहास की जानकारी देना है।
20 एकड़ जमीन में फैला यह दर्शनीय स्थल चारों दिशाओं में महाराणा प्रताप के शौर्य पराक्रम वीरता के गुणगान गाता है।
इस स्थल ने मेवाड़ के इतिहास को कलात्मक प्रतिमाओं तथा चित्रों से संजोया हुआ है।
साथ ही यहां भारत माता का मंदिर तथा अखंड भारत का नक्शा भी बना हुआ है।
वर्तमान में यह स्थल राष्ट्रीय स्वयंसेवक समिति द्वारा संचालित है।
100 करोड रुपए के इस प्रोजेक्ट में वर्तमान में 40 करोड रुपए खर्च किए जा चुके हैं। यहां बप्पा रावल महाराणा कुंभा महाराणा सांगा भीलू पूजा महारानी पद्मिनी पन्नाधाय भामाशाह महाराणा प्रताप की मूर्तियां स्थापित की गई है। साथ ही यहां लाइट एंड साउंड शो भी आयोजित किया जाता है। देश भक्ति के भाव को जागृत करने हेतु एक डॉक्यूमेंट्री भी प्रस्तुत की जाती है।
Sajjangarh Monsoon Palace
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